1 year ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

सिरदर्द को 5 मिनट में ठीक करने वाली प्राकृतिक चिकित्सा...

नाक के दो हिस्से हैं दायाँ स्वर और बायां स्वर जिससे हम सांस लेते और छोड़ते हैं ,पर यह बिल्कुल अलग - अलग असर डालते हैं और आप फर्क महसूस कर सकते हैं।

दाहिना नासिका छिद्र "सूर्य" और बायां नासिका छिद्र "चन्द्र" के लक्षण को दर्शाता है या प्रतिनिधित्व करता है।

सरदर्द के दौरान, दाहिने नासिका छिद्र को बंद करें और बाएं से सांस लें 

और बस ! पांच मिनट में आपका सरदर्द "गायब" है ना आसान ?? और यकीन मानिए यह उतना ही प्रभावकारी भी है।

अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं तो बस इसका उल्टा करें...
यानि बायीं नासिका छिद्र को बंद करें और दायें से सांस लें ,और बस ! थोड़ी ही देर में "तरोताजा" महसूस करें।

दाहिना नासिका छिद्र "गर्म प्रकृति" रखता है और बायां "ठंडी प्रकृति"
अधिकांश महिलाएं बाएं और पुरुष दाहिने नासिका छिद्र से सांस लेते हैं और तदनरूप क्रमशः ठन्डे और गर्म प्रकृति के होते हैं सूर्य और चन्द्रमा की तरह।

प्रातः काल में उठते समय अगर आप बायीं नासिका छिद्र से सांस लेने में बेहतर महसूस कर रहे हैं तो आपको थकान जैसा महसूस होगा ,तो बस बायीं नासिका छिद्र को बंद करें, दायीं से सांस लेने का प्रयास करें और तरोताजा हो जाएँ।

अगर आप प्रायः सरदर्द से परेशान रहते हैं तो इसे आजमायें ,दाहिने को बंद कर बायीं नासिका छिद्र से सांस लें बस इसे नियमित रूप से एक महिना करें और स्वास्थ्य लाभ लें।

बस इन्हें आजमाइए और बिना दवाओं के स्वस्थ महसूस करें

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1 year ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

महामृत्युंजय मंत्र एक संजीवनी मंत्र है...
 #thread 

शब्द/मंत्र ×मंत्र/शक्ति =शब्द/शक्ति

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्युत्योर्मुक्षीय माऽमृतात

महादेव की कृपा से भरा एक एक मंत्र का शब्द आपमें शक्ति का प्रसार करता हुआ आपको अलौकिक अनुभूति का आभास करवाता है
हम सब इस मंत्र को भलीभांति सुनते, जानते, गाते एवं भजते है आईये मंत्र की गूढ़ता का अवलोकन करें...

शब्द की शक्ति का स्पष्टीकरण

'त्र' -- त्र्यम्बक, त्रिशक्ति तथा त्रिनेत्र का प्रतीक है। यह शब्द तीनों देव अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भी शक्ति का प्रतीक है ।

'य'- यम तथा यज्ञ का प्रतीक है।

'म'- मंगल का द्योतक है।

( यहाँ पर 'य' तथा 'म' को संलग्न करके 'यम' कहे जाने पर मृत्यु के देवता का प्रतीक हो जाता है )

'ब'-  बालार्क(सुबह का सूर्य )तेज का बोधक है।

'कं' - काली का कल्याणमयी बीज है। काली का एकाक्षरी बीज 'क्रीं' है और उन्हें 'ककार' सर्वांगी माना जाता है।

'य'-  उपरोक्त वर्णन के अनुसार यम तथा यज्ञ का द्योतक है।

'जा' -जालंधरेश का बोधक है।

'म'- महाशक्ति का बोधक है।

'हे' - हाकिनी का बोधक है।

'सु'-  सुप्रभात, सुगन्धि तथा सुर का बोधक है।

'गं' -  गणपति बीज होने के साथ-साथ ऋद्धि-सिद्धि का दाता भी है।

'धिं' -  अर्थात् 'ध' धूमावती का बीज है जो कि अलक्ष्मी अर्थात् कंगाली को हटाता है। देह को पुष्ट करता है।

' म'-  महेश का बोधक है ।

'पु' - पुण्डरीकाक्ष का बोधक है।

'ष्टि - ' देह में स्थित षट्कोणों का बोधक है जो कि देह में प्राणों का संचार करते हैं ।

'व'-  वाकिनी का द्योतक है।

'ध'-  धर्म का द्योतक है।

'नं' - नंदी का बोधक है।

'उ'- माँ उमा रूप में पार्वती का बोधक है। |

'र्वा' -शिव के बाँये शक्ति का बोधक है ।

'रु' -रूप तथा आँसू का बोधक है।

'क' - कल्याणी का द्योतक है।
'मि' सूर्य के स्वरूप अर्यमा का बोधक है ।

' व' - वरुण का बोधक है।

'बं' - बंदी देवी का द्योतक है।

'ध' - धंदा देवी का द्योतक है। इसके कारण देह के विकास समाप्त होते हैं तथा मांस सड़ता नहीं है।

'नात्'-  सूर्य भगवान् के भग स्वरूप का द्योतक है।

'मृ' - मृत्युञ्जय का द्योतक है।

'त्यो'-  नित्येश का द्योतक है।

'मु' - मुक्ति का द्योतक है।

'क्षी'-  क्षेमंकरी का बोधक है।

'य'-  पूर्व वर्णित बोधन |

'मा' - आने लिए माँग तथा मन्त्रेश का द्योतक है।

'मृ' - पूर्व वर्णित ।

'तात' - चरणों में स्पर्ण का द्योतक है।

यह पूर्ण विवरण 'देवो भूत्वा देवं यजेत' के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।

हर हर महादेव 🙏 

1 year ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

◆ गीता पहली बार पढ़ने पर समझ नहीं आती।

◆ गीता दूसरी बार पढ़ने पर कुछ-कुछ समझ आती है।

◆ गीता तीसरी बार पढ़ने पर समझ आने लगती है।

◆ गीता चौथी बार पढ़ने पर पूरी समझ आने लगती है।

◆ गीता पांचवी बार पढने पर ज्ञान देने लगती है।

◆ गीता छठी बार पढ़ने पर कर्म के महत्व को समझाती है।

◆ गीता सातवीं बार पढ़ने पर घर के सारे क्लेश दूर कर देती है।

◆ गीता आठवीं बार पढ़ने पर सारे विघ्न दूर कर देती है।

◆ गीता नौवीं बार पढ़ने पर पूरे घर को समृद्ध बना देती है।

◆ गीता दसवीं बार पढ़ने पर आपको पूर्ण ज्ञानी बना देती है।

◆ गीता 11वीं बार पढ़ने पर आपको बहुत बड़ा व्यवसायी बना देती है।

◆ गीता 12वीं बार पढने पर आपको कृष्ण के समान चतुर बना देती है।

◆ गीता 13वीं बार पढ़ने पर आपको एक कुशल वक्ता बना देती है।

◆ गीता 14वीं बार पढ़ने पर आपको ब्राह्मण शूद्र और वैश्य और क्षत्रिय से ऊपर उठा देती है।

◆ गीता 15 वीं बार पढ़नें पर आपको कृष्ण बना देती है।

◆ गीता 16 वीं बार पढ़ने पर संसार रूपी महाभारत में युद्ध करना सिखा देती है।

◆ गीता 17 वीं बार पढ़ें पर मोक्ष की और प्रवृत कर देती है।

◆ गीता 18 वीं बार पढ़ने पर जन्म मरण के बंधन से मुक्त कर देती है।

गीता के जितने अध्याय हैं उतनी बार भागवत गीता को पढ़िए, तब जाकर आप कृष्ण की तरह एक योद्धा भी बनेंगे, एक रणनीतिकार भी बनेंगे और एक कुशल वक्ता भी बनेंगे।

जय श्री कृष्ण - जय गोविंदा ❤️

 #TheHindulegacy   #BhagwatGita   #hindudharma   #hindu 

1 year ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

🚨 #Must_read   📌 #Long_thread 

🔆  सनातन नियम-धर्म  🔆  

👉🏻 क्या करें-क्या ना करें ⁉️
[ Some Extremely Necessary Rules Of Vaidik Sanatan Dharma ] 

१- भैरव की पूजा में तुलसी स्वीकार्य नहीं है।

२- भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

३- देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

४- किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

५- एकादशी,अमावस्या,कृृष्ण चतुर्दशी,पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए। 

६- बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

७- शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

८- शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुमकुम नहीं चढ़ते।

९- शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा,देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

१०- अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावे।

११- एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए। 

१२- सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

१३- बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छू कर प्रणाम करें।

१४- जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं।इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

१५- जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

१६- जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

१७- संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।

१८- दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

१९- यज्ञ,श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

२०- शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए।परिक्रमा करना श्रेष्ठ है।

२१- नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

२२- विष्णु भगवान को चावल गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।

२३- पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें। 

२४- बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।

२५- पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।

२६- सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।

२७- गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।

२८- पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।

२९- दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।

३०- सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

३१- पूजन करने वाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।

३२- पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा,धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।

३३- घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।

३४- गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़कर सब पत्र प्रिय हैं।

३५- कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोड़कर निषेध है।

३६- बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नहीं करते। 

३७- रविवार को दूर्वा नहीं तोड़नी चाहिए।

३८- केतकी पुष्प शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए। 

३९- केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करें।

४०- देवताओं के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नहीं चाहिए।

४१- शालिग्राम का आवाह्न तथा विसर्जन नहीं होता।

४२- जो मूर्ति स्थापित हो उसमें आवाहन और विसर्जन नहीं होता।

४३- तुलसीपत्र को मध्यान्ह के बाद ग्रहण न करें। 

४४- पूजा करते समय यदि गुरुदेव,ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करें।

४५- मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है।

४६- कमल को पांच रात,बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है।

४७- पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल गाय के दुग्ध से स्नान कराने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है।

४८- शालिग्राम पर अक्षत नहीं चढ़ता। लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है।

४९- हाथ में धारण किये पुष्प, तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल अपवित्र हो जाते हैं। 

५०- पिघला हुआ घी और पतला चन्दन नहीं चढ़ाना चाहिए।

५१- प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ाएं।

५२- आसन, शयन, दान, भोजन, वस्त्र, संग्रह, विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गई है।

५३- जो मलिन वस्त्र पहनकर,मूषक आदि के काटे वस्त्र, केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो,जप आदि करता है उसे देवता नाश कर देते हैं।
५४- मिट्टी,गोबर को निशा में और प्रदोषकाल में गोमूत्र को ग्रहण न करें।

५५- मूर्ति स्नान में मूर्ति को अंगूठे से न रगड़ें।

५६- पीपल को नित्य नमस्कार पूर्वाह्न के पश्चात् दोपहर में ही करना चाहिए।इसके बाद न करें।

५७- जहां अपूज्यों की पूजा होती है और विद्वानों का अनादर होता है,उस स्थान पर दुर्भिक्ष, मरण और भय उत्पन्न होता है।

५८- पौष मास की शुक्ल दशमी तिथि, चैत्र की शुक्ल पंचमी और श्रावण की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन करें।

५९- कृष्ण पक्ष में, रिक्तिका तिथि में, श्रवणादी नक्षत्र में लक्ष्मी की पूजा न करें।

६०- अपराह्नकाल में, रात्रि में, कृष्ण पक्ष में, द्वादशी तिथि में और अष्टमी को लक्ष्मी का पूजन प्रारम्भ न करें। 

६१- कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

६२- मंडप के नव भाग होते हैं, वे सब बराबर-बराबर के होते हैं अर्थात् मंडप सब तरफ से चतुरासन होता है,अर्थात् टेढ़ा नहीं होता।जिस कुंड की श्रृंगार द्वारा रचना नहीं होती वह यजमान का नाश करता है।

६३- इन 21 वस्तुओं को सीधे पृथ्वी पर रखना वर्जित होता है।ये वस्तुएं पृथ्वी की ऊर्जा को अव्यवस्थित करती हैं और उस स्थान को अशुभ बनाती हैं।
मोती, शुक्ति (सीपी), शालिग्राम, शिवलिंग, देवी मूर्ति, शंख, दीपक, यन्त्र, माणिक्य, हीरा, यज्ञसूत्र (यज्ञोपवीत), फूल, पुष्पमाला, जपमाला, पुस्तक, तुलसीदल, कर्पूर, स्वर्ण, गोरोचन, चंदन और शालिग्राम को स्नान कराया अमृत जल॥

६४- पूजा-पाठ करते समय कुछ गलती हो ही जाती है अतः पूजा के अन्त में यह एक मंत्र अवश्य बोलना चाहिए –

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्णं तदस्तु मे॥ 

॥जय श्री हरि श्रीमन्नारायण॥ 🙏🚩 

1 year ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

घटस्थापना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो नौ दिवसीय त्योहार, नवरात्रि की शुरुआत का प्रतीक है। यह अनुष्ठान प्रतीकात्मक रूप से देवी शक्ति का आह्वान करता है। 
अनुष्ठान में किसी के घर के प्रार्थना कक्ष में एक बर्तन या कलश रखना शामिल है। घड़े को पानी से भरा जाता है और इससे सजाया जाता है: 
आम के पत्ते
नारियल
चंदन या पेस्ट
पुष्प
दूर्वा घास
हल्दी (अक्षत) मिश्रित चावल
पान सुपारी
पाँच पत्ते
पांच रत्न या एक सोने का सिक्का
घटस्थापना करने का सबसे शुभ समय नवरात्रि के पहले एक तिहाई दिन (प्रतिपदा) के दौरान होता है। 
इस अनुष्ठान को कलश स्थापना या कलशस्थापन के नाम से भी जाना जाता है। 

आश्विन घटस्थापना रविवार, अक्टूबर 15, 2023 को
घटस्थापना मुहूर्त -  06:34  ए एम से  10:25  ए एम
अवधि - 03 घण्टे 51 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त -  11:58  ए एम से  12:44  पी एम
अवधि - 00 घण्टे 46 मिनट्स 

1 year ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

गणेश जी के शिकंजी (त्रिशूल) के तीन शंकु ब्रह्मा, विष्णु और शिव की एकता को प्रस्तुत करते हैं, जो जीवन के स्वरूप, उत्पत्ति और संहार को संदर्भित करते हैं। इससे गणेश जी को विश्व के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में माना जाता है। 🙏✨ 

2 years ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

अर्जुन का झंडा किसके साथ चिह्नित किया गया था ? 

इंद्र

भगवान शिव

हनुमान

कृष्णा

अग्नी देव

4 votes

2 years ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

सत्य की सृष्टि और पुष्टि के लिए
जो प्रत्यक्ष में असत्य दिखाई दे, 
वह भी यथार्थ में सत्य ही है । " 

2 years ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel

2 years ago • The Hindu Legacy - A Spritual Channel